Monday 27 February 2012

आचार्य श्रीराम शर्मा के अनमोल वचन

आचार्य श्रीराम शर्मा

आचार्य श्रीराम शर्मा
  • इस संसार में प्यार करने लायक़ दो वस्तुएँ हैं-एक दुख और दूसरा श्रम। दुख के बिना हृदय निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता। - आचार्य श्रीराम शर्मा
  • संपदा को जोड़-जोड़ कर रखने वाले को भला क्या पता कि दान में कितनी मिठास है। - आचार्य श्रीराम शर्मा
  • जीवन में दो ही व्यक्ति असफल होते हैं- एक वे जो सोचते हैं पर करते नहीं, दूसरे जो करते हैं पर सोचते नहीं। - आचार्य श्रीराम शर्मा
  • मानसिक बीमारियों से बचने का एक ही उपाय है कि हृदय को घृणा से और मन को भय व चिन्ता से मुक्त रखा जाय। - आचार्य श्रीराम शर्मा
  • मनुष्य कुछ और नहीं, भटका हुआ देवता है। - आचार्य श्रीराम शर्मा
  • असफलता यह बताती है कि सफलता का प्रयत्न पूरे मन से नहीं किया गया। — श्रीराम शर्मा आचार्य
  • शारीरिक गुलामी से बौद्धिक गुलामी अधिक भयंकर है। — श्रीराम शर्मा, आचार्य
  • ग्रन्थ, पन्थ हो अथवा व्यक्ति, नहीं किसी की अंधी भक्ति। — श्रीराम शर्मा, आचार्य
  • जैसी जनता, वैसा राजा। प्रजातन्त्र का यही तकाजा॥ — श्रीराम शर्मा, आचार्य
  • केवल वे ही असंभव कार्य को कर सकते हैं जो अदृष्य को भी देख लेते हैं। — श्रीराम शर्मा आचार्य
  • नहीं संगठित सज्जन लोग। रहे इसी से संकट भोग॥ — श्रीराम शर्मा, आचार्य
  • मनुष्य की वास्तविक पूँजी धन नहीं, विचार हैं। — श्रीराम शर्मा, आचार्य
  • प्रज्ञा-युग के चार आधार होंगे - समझदारी, इमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी। — श्रीराम शर्मा, आचार्य
  • मनःस्थिति बदले, तब परिस्थिति बदले। - पं श्रीराम शर्मा आचार्य
  • रचनात्मक कार्यों से देश समर्थ बनेगा। — श्रीराम शर्मा, आचार्य
  • संसार का सबसे बडा दिवालिया वह है जिसने उत्साह खो दिया। — श्रीराम शर्मा, आचार्य
  • समाज के हित में अपना हित है। — श्रीराम शर्मा, आचार्य
  • सुख में गर्व न करें, दुःख में धैर्य न छोड़ें। - पं श्री राम शर्मा आचार्य
  • उसी धर्म का अब उत्थान, जिसका सहयोगी विज्ञान॥ — श्रीराम शर्मा, आचार्य
  • बड़प्पन अमीरी में नहीं, ईमानदारी और सज्जनता में सन्निहित है। — श्रीराम शर्मा आचार्य
  • जो बच्चों को सिखाते हैं, उन पर बड़े खुद अमल करें तो यह संसार स्वर्ग बन जाय। — श्रीराम शर्मा आचार्य
  • विनय अपयश का नाश करता हैं, पराक्रम अनर्थ को दूर करता है, क्षमा सदा ही क्रोध का नाश करती है और सदाचार कुलक्षण का अंत करता है। — श्रीराम शर्मा आचार्य
  • जब तक व्‍यक्ति असत्‍य को ही सत्‍य समझता रहता है, तब तक उसके मन में सत्‍य को जानने की जिज्ञासा उत्‍पन्‍न नहीं होती है। - पं. श्रीराम शर्मा
  • अवसर तो सभी को जिन्‍दगी में मिलते हैं, किंतु उनका सही वक्‍त पर सही तरीके से इस्‍तेमाल कुछ ही कर पाते हैं। - श्रीराम शर्मा

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